शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

"बेरोजगारी पर हाय तौबा"

 


"बेरोजगारी पर हाय तौबा"

 भारत की GDP का सामने आने से इतना तगड़ा असर हुआ है। भारत की जनता को की सभी को अपनी बेरोजगारी याद आ गयी जिस व्यक्ति ने घर के लिये एक रुपया भी ना कमाया हो आज उसको भी लग रहा है मैं बेरोजगार हूं । और फिर रही सरकारी नौकरियों कि बात तो वो क्या पहले सही ढ़ग से हो रही थी अब कम से कम उनके आश में तो नहीं है। हम ?



पर आज कुछ भी हो हर व्यक्ति लाचार बना बैठा है। कोरोना और लोकडाउन ने भारत की अर्थव्यवस्था को इतनी बड़ी चोट दी है कि काफी सालो तक हम उपर नहीं आ सकते और कुछ अवाछिंत लोग इसी चक्कर का फायदा उठा कर भारत की जनता को भड़का कर अपनी रोटियाँ सेकं रहे है। जहां आज सभी लोगों को साथ खड़े होने का समय है। वहां लोग चालाकी और गद्दारी की चादर फैलाये बैठे है।



वैसे देखा जाए तो प्रधानमत्री जी से ये उम्मीद तो नहीं थी परन्तु फिर भी आज देश के सकंट को देखते हुए उनके हर फैसले को सही मानना पड़ रहा है। परन्तु ये नहीं है। कि ये सभी फैसले सहीं ही हो जनता ने साथ दिया है। तो उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने का कोई खेल नहीं होना चाहिए । एक तरफ सरकार बोलती है। कि कहां से नौकरी दे. खजाने में इतने पैसे नहीं है।



पर जरा इस बात पर भी गौर करीए जब प्राइवेट सेक्टरस् में नोकरियां थी तो सरकार ने कितने प्राइवेट सेक्टर बंद करवा दिये और अर्थव्यवस्था को धक्का मारा इतनी नौकरिया चली गई कि आज वों प्रधानमंत्री जी द्वारा दिये गए बिजनेस विचार का ही पालन कर अपना पेट पालने पर मजबूर है। क्या कोई बता सकता है। इन्जीनियरीगं और डॉकटर की पढ़ाई किया हुआ लड़का क्या पकौड़े तलेगा. चाय बनायेगा ...



अगर ज्यादा हो गया तो ये ही बता दो की पकौड़े तलने के लिये क्या कोई डिग्री की आवश्यकता है। अगर पकौड़े और चाय पर ही गाड़ी रुकती है । तो क्यों इतनी पढाई और अनेक कोर्सज करवाते है। आखिर सरकार की अर्थव्यवस्था इतनी चरमरा गई कि खुद अपने सासंदो की खाने की लच्छेदार डिस भी सबसीडी पर आती है।

भारत के सविधांन को नमन

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